सिद्ध पीठ पुश्तैनी शिवालय अंदोसर मंदिर

 


सनातन परंपरा में भगवान शिव की पूजा अर्चना का बहुत महत्व है। शिवलिंग का पूजन व अभिषेक करने से सभी दिव्य शक्तियों के अभिषेक का फल उसी क्षण प्राप्त होता है। भगवान शिव के प्रति ऐसी ही प्रगाढ़ आस्था के फलस्वरूप कर्णदल नगरी कांधला की चारों दिशाओं में शिवालयों की स्थापना की गई है। कांधला उत्तर में स्थित अंदोसर सिद्धपीठ महादेव मंदिर भी उन्हीं चार प्राचीन सिद्धपीठों में से एक है और लगभग सवा दो सौ वर्षों से न केवल कांधला वरन आसपास के एक विशाल भू भाग में निवास करने वाले सनातन, बौद्ध व जैन धर्मावलंबियों की आस्था का केंद्र रहा है।

पुश्तैनी शिवालय अंदोसर महादेव मंदिर की स्थापना वर्ष 1800 ईस्वी में पुरसीवाडा (पंजाब) से कांधला आये पं रामचंद्र जी के पुत्र हकीम शिवनाथ, पं शिवप्रसाद व पं शिवसिंह द्वारा की गई। राजस्व अभिलेखों में वर्तमान में यह मंदिर महादेव मारुफ शिवाला के नाम से दर्ज है। पूर्व में यह हकीम शिवनाथ शिवाला के नाम से राजस्व अभिलेखों में दर्ज रहा है। शिवाला के साथ जुड़े अंदोसर शब्द की पृष्ठभूमि में जायें तो वर्तमान में स्थित शिवाला के उत्तर में एक बाग था। बाग के उत्तर में एक सरोवर था जिसमें कमलगट्टे आदि उगाये जाते थे। यही आनंद सरोवर समय के साथ साथ स्थानीय उच्चारण में बिगड़ कर अंदोसर हो गया। 

मंदिर के भौगोलिक विवरण की बात करें तो कांधला उत्तर में स्थित यह मंदिर  सर्वाधिक विशाल क्षेत्र में अवस्थित है। मंदिर के पास अपने रखरखाव हेतु समुचित कृषि भूमि है। मंदिर परिसर व कृषि भूमि को लेकर हकीम शिवनाथ, पं शिव प्रसाद व पं शिव सिंह को बसंती राम, शादी राम द्वारा दायर दीवानी मुकदमों का सामना सन 1835 ईस्वी से सन 1847 ईस्वी की बारह वर्ष की लंबी अवधि तक करना पड़ा। 28 जनवरी 1847 ईस्वी को अदालत दीवानी जिला सहारनपुर मिलोसन मिस्टर जार्ज ज्यूरिक हारून साहब कायम मकाम जज द्वारा शिव बंधुओं के पक्ष में मुकदमा तय हुआ।

सिद्धपीठ अंदोसर महादेव मंदिर परिसर में शिवालय के साथ साथ श्री राधे कृष्ण व श्री हनुमान जी के मंदिर भी अवस्थित हैं। सिद्धपीठ के विषय में यह आम मान्यता है कि यहां भक्तों द्वारा मांगी गई हर मुराद भगवान भोलेनाथ की कृपा से पूर्ण होती है। क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिकों का कहना है कि कुछ दशकों पूर्व तक यहां साधू संतों का जमावड़ा लगा रहता था और उनके भोजन आदि की व्यवस्था हेतु चौबीस घंटे भट्टी चढ़ी रहती थी। अंदोसर महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग श्वेत रंग का है। जीवन में सुख शांति हेतु विशेष रूप से श्वेत शिवलिंग की पूजा अर्चना की जाती है। प्रातः काल में भगवान भास्कर की स्वर्ण रश्मियां शिवलिंग व माता पार्वती के दर्शन हेतु प्रतिदिन अंदोसर महादेव मंदिर में उपस्थित रहते हैं। 

मंदिर के संबंध में एक किंवदन्ती बहुत प्रसिद्ध है। अस्सी के दशक में एक बार जब वर्षा न होने के कारण कांधला क्षेत्र का पूरा जीव जगत त्राहि त्राहि कर उठा तब अंदोसर महादेव शिवाला में शिवलिंग तक जलभराव कर भगवान भोलेनाथ से रक्षा की प्रार्थना की गई जिस पर प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने वर्षा कराकर भक्तों की रक्षा की।

मंदिर में पूजा अर्चना का पुनीत कर्तव्य लगभग पिछले सौ वर्षों से विद्वान व सज्जन पं राधेश्याम जी (पुत्र/स्व श्री पं जयभगवान जी) के परिवार द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी किया जाता रहा है।अंदोसर महादेव मंदिर की महिमा का आभास केवल क्षेत्र वासियों तक सीमित नहीं है। देश विदेश, अन्य प्रदेशों से पधारे भक्त जन भी भगवान शिव की कृपा से इस महिमा को स्वयं अनुभव कर पाते हैं। बिहार राज्य से पधारे श्री जितेंद्र मिश्रा जी (बी डी ओ कैराना) मंदिर परिसर में प्रवेश करने के पश्चात अपनी हथेली में समायी सुगन्ध को लक्ष्य कर अंदोसर महादेव मंदिर के सिद्धपीठ होने की पुष्टि करते हैं।

सिद्धपीठ मंदिर महादेव मारुफ शिवाला अंदोसर पहुंचने के लिए शिवभक्तों को पहले कैराना बाईपास, शिवाला रोड पर पहुंचना होगा। यहीं पर स्थित कृष्ण वाटिका से मंदिर की कृषि भूमि आरंभ हो जाती है और उत्तर दिशा की ओर लहराती सनातनी पताकाएं दिखलाई देने लगती है जिधर मंदिर का मुख्य द्वार स्थित है।श्रावणी महाशिवरात्रि व फाल्गुनी महाशिवरात्रि पर मंदिर में भक्तों द्वारा विशेष उत्साह के साथ पूजा अर्चना की जाती है।

१ मई २०११ को हिंदुस्तान दैनिक में प्रकाशित समाचार ''कांधला के ऐतिहासिक मंदिर में चोरी''और ४ मई २०११ को प्रकाशित समाचार ''चोरी हुई मूर्ति खंडित अवस्था में मिली''से कांधला में पुलिस व्यवस्था की खामियों का सहजता से पता चलता है क्योंकि ये चोरी वहां सुबह और शाम की पूजा के बीच में हुई और दिनदहाड़े हुई इस वारदात को खोलने में पुलिस अभी तक नाकाम है.जबकि चोरी हुई कुछ मूर्तियों में से लक्ष्मी ,कुबेर, हनुमान की मिश्रित धातु की प्रतिमाएं तथा राधा कृष्ण की चोरी की प्रतिमा चोर खंडित अवस्था में मंदिर में पोलीथिन में वापस सफलता पूर्वक पहुंचा चुके हैं.


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

स्व बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट स्मृति पुस्तकालय - भाग 11

स्व श्री शरद कौशिक स्मृति चिल्ड्रेन पार्क

स्व शरद कौशिक स्मृति बैडमिंटन टूर्नामेंट