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शिवस्य प्रसाद: का लोकार्पण - 25 जून 2023

 सिद्ध पीठ पुश्तैनी शिवालय अंदोसर मंदिर नई बस्ती कांधला में दिनाँक 25 जून 2023 को मन्दिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड) के चतुर्थ स्थापना वर्ष तिथि पर सनातन धर्म के प्रचार प्रसार को समर्पित धार्मिक पत्रिका " शिवस्य प्रसाद" का लोकार्पण किया गया. शिवस्य प्रसादः पत्रिका की संकलनकर्ता व संपादिका डॉ शिखा कौशिक नूतन के अनुसार पत्रिका में शिव के स्वरूप, सिद्ध पीठ मंदिर महादेव मारूफ हकीम शिवनाथ शिवाला कांधला का इतिहास व महिमा और शिव आराधना के महत्वपूर्ण तथ्यों से शिव भक्तों को परिचित कराने का प्रयास किया गया है। ट्रस्ट द्वारा धार्मिक पत्रिका "शिवस्य प्रसाद:" की एक - एक प्रति राजकीय महिला महाविद्यालय कांधला की प्राचार्य प्रमोद मैडम, बी डी ओ कैराना श्री जितेन्द्र मिश्रा, मन्दिर के पुजारी पंडित राधेश्याम जी और उत्तर प्रदेश बिजली विभाग के इंजीनियर मनोज कुमार को भेंट की गई. कार्यक्रम में ट्रस्ट की अध्यक्ष शालिनी कौशिक एडवोकेट, महासचिव डॉ शिखा कौशिक, धर्म सिंह, उत्तर प्रदेश बिजली विभाग से गौतम चौहान, उपदेश, राकेश यादव, संजय चौहान, भगवान दास, प्रवीन, रणजीत

मन्दिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड) पर्यावरण दिवस - 2023

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  सिद्ध पीठ पुश्तैनी शिवालय अंदोसर मंदिर नई बस्ती कांधला में 5 जून 2023 को माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी के जन्मदिवस पर मंदिर महादेव मारूफ शिवाला कांधला धर्मार्थ ट्रस्ट (रजिस्टर्ड) द्वारा उनके दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और उत्तर प्रदेश के लिए उनके कुशल नेतृत्व में उज्जवल भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित की गई, साथ ही, विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार और स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण संरक्षण के लिए माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आह्वान पर मन्दिर परिसर में सीता अशोक के पौराणिक और औषधीय पौधों का रोपण किया गया. सीता अशोक वृक्ष का पौराणिक महत्व यह है कि कहते हैं लुंबिनी में बुद्ध का जन्म भी सीता-अशोक के वृक्ष के नीचे ही हुआ था। इसलिए बौद्ध धर्म में यह एक पूज्य वृक्ष माना गया है। यह भी कहा जाता है कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपना प्रथम उपदेश सीता-अशोक के नीचे बैठ कर ही दिया था। रामायण में वर्णित अशोक वाटिका को भी सीता-अशोक के कुंजों की वाटिका माना गया है। कालीदास ने अपने काव्य ‘ऋतु संहार’ और नाटकों में अशोक के वृक्ष